जीवन का झरना
यह जीवन क्या है ? निर्झर है, मस्ती ही इसका पानी I
सुख दु:ख के दोनों तीरों से, चल रहा राह मनमानी I
कब फूटा गिरी के अंतर में, किस अंचल से उतरा नीचे?
किस घाटी से बहकर आया, समतल में अपने को खींचे I
निर्झर में गति हैं, यौवन है, वह आगे बढ़ता जाता है I
धुन सिर्फ़ है चलने की, अपनी मस्ती में गाता है I
बाधा के रोड़ों से लड़ता वन के पेड़ों से टकराता I
बढ़ता चट्टानों पर चढ़ता, चलता यौवन से मदमाता I
लहरें उठती है गिरती हैं, नाविक तट पर पछताता है I
तब यौवन बढ़ता है आगे, निर्झर बढ़ता ही जाता है I
निर्झर में गति है जीवन है, रुक जाएगी यह गति जिस दिन I
उस दिन मर जाएगा मानव, जग दुर्दिन की घड़ियाँ गिन गिन I
निर्झर कहता है - बढ़े चलो, तुम पीछे मत देखो मुड़कर I
यौवन कहता है - बढ़े चलो, सोचो मत क्या होगा चलकर I
चलना है -केवल चलना है, जीवन चलता ही रहता है I
मर जाना है रुक जाना ही, निर्झर यह झरकर कहता है I
-आरसी प्रसाद सिंह
यह जीवन क्या है ? निर्झर है, मस्ती ही इसका पानी I
सुख दु:ख के दोनों तीरों से, चल रहा राह मनमानी I
कब फूटा गिरी के अंतर में, किस अंचल से उतरा नीचे?
किस घाटी से बहकर आया, समतल में अपने को खींचे I
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निर्झर का क्या अर्थ है? कवि ने जीवन को निर्झर क्यों कहा है?
- निर्झर का अर्थ है झरना I
- कवि ने जीवन को झरना कहा है क्योंकि जिस प्रकार झरना बिना रुके अबाध गति से बढ़ता जाता है उसी प्रकार जीवन भी बिना रुके लक्ष्य की ओर बढ़ता ही रहता है I
सुख दु:ख के ‘दो तीर’ से कवि का क्या आश्य है?
- मनुष्य का जीवन हमेशा एक जैसा नहीं रहता है, सुख और दुख का आना जाना लगा रहता है I
- जिस प्रकार रात के बाद सुबह होती है, उसी प्रकार दुख के बदल छट जाते है और सुख के दिन आते हैं I
- रात दुख का प्रतीक है और दिन सुख का I
- जिस तरह निर्झर दो किनारों के बीच बहते हुए आगे बढ़ता है उसी तरह जीवन में सुख और दुख दो किनारे हैं जीवन इन्ही के बीच चलता रहता है I
निर्झर कहाँ से निकलता है तथा कहाँ समाप्त हो जाता है?
- निर्झर पहाड़ों के बीच से फूटकर ऐसे निकलता है मानो पर्वत का सीना चीरकर बाहर निकल रहा हो
- पर्वतों की गोद में खेलते हुए वह घाटी में गिरता है और घाटी से बहकर समतल की ओर चला जाता है
- जहाँ वह तालाब नदी या समुद्र में विलीन हो जाता है और उसका अस्तित्व समाप्त हो जाता है I
निर्झर में गति हैं, यौवन है, वह आगे बढ़ता जाता है I
धुन सिर्फ़ है चलने की, अपनी मस्ती में गाता है I
बाधा के रोड़ों से लड़ता वन के पेड़ों से टकराता I
बढ़ता चट्टानों पर चढ़ता, चलता यौवन से मदमाता I
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कवि ने झरने की क्या क्या विशेषताएँ बताई है?
कवि श्री आरसी प्रसाद सिंह ने झरने के बारे में बताया है कि
· वह अपनी ही गति में मदमस्त होता हुआ तेज़ी से आगे बढ़ता जाता है उसमे जीवन होता है I
· वह अपनी धुन में आगे बढ़ने की ईच्छा रखता है I
· वह रास्ते के पत्थरों को तोड़ता हुआ अपना रास्ता बनाता है I
· उसके यौवन का जोश उसे जंगल के पेड़ों से राह बनाने में सहयता करता है I
झरना किन किन कठिनाईयों को पार कर के आगे बढ़ता है?
झरना जब पहाड़ियों के अंदर से निकलता है तो
· पर्वत का सीना चीरकर बाहर निकलता है I
· रास्ते के पत्थरों से लड़ता है I
· जंगल के पेड़ों से टकराकर वह अपने लिए रास्ता बनाता है I
· बहुत ऊँची चट्टानों पर चढता है प्रक्रर्ती को हरियाली देता है I
वह यह सब बड़ी आसानी से इसलिए कर पाता है क्योंकि उसमे जवानी का जोश है I
निर्झर बाधाओं से कैसे लड़ता है?
· पर्वतों का सीना चीर कर जन्म लेता है I
· उसके रास्ते में अनेक चट्टानें आती है उनसे टकराकर वह अपना मार्ग बनता है अगर वह उसे पार नहीं कर पाता है तो दूसरी ओर से रास्ता बना लेता है
· कंकड़ों और पत्थरों के ऊपर से बहकर निकल जाता है
· पेड़ों के बीच से रास्ता बनाकर आगे बढ़ता है
कहने का अर्थ है कि कैसा भी स्थान हो, वह बाधाओं को हटाकर अपना मार्ग ढूँढ लेता है और गंतव्य तक पहुँच जाता है I
बाधा के रोड़ों से लड़ने का क्या आश्य है?
कवि श्री आरसी प्रसाद सिंह बाधा के रूप में हमारे जीवन में आने वाली दु:ख, परेशनियों,कठिनाईयों को बता रहे हैं कि हमें इनसे ड़रकर हार मानकर अपने लक्ष्य को नहीं भूलना चाहिए Iजिस प्रकार झरना पत्थरों से टकराता है और आगे बढ़ता है उसी प्रकार हमें भी उनका सामना करके आगे बढ़ना चाहिए I
लहरें उठती है गिरती हैं, नाविक तट पर पछताता हैI
तब यौवन बढ़ता है आगे, निर्झर बढ़ता ही जाता है I
निर्झर में गति है जीवन है, रुक जाएगी यह गति जिस दिन I
उस दिन मर जाएगा मनाव, जग दुर्दिन की घड़ियाँ गिन गिन I
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नाविक क्यों पछताता है?
नाविक तेज़ उठती गिरती लहरों को देखकर घबरा जाता है और अपनी नाव को पानी में नहीं उतारता जिस कारण वह उस पार नहीं पहुँच पाता है और किनारे पर बैठा पछताता है I
नाविक द्वारा कवि ने किसकी तरफ संकेत किया है?
- कवि ने नाविक को प्रतीक बनाकर उन लोगों की तरफ़ संकेत किया है जो असफलता और संघर्ष के डर से कोई काम शुरू नहीं करते परिणाम स्वरूप निराशा में डूबे रहते है I
- जो वीर और हिम्मतवाले लोग होते हैं वे मुसीबतों और बाधाओं से लड़ते हुए अपने लक्ष्य की ओर चलते है और सफलता उनके कदम चूमती हैं
जीवन की गति रुक जाने पर क्या होगा ? प्रस्तुत पंक्तियों के आधार पर लिखिए I
जीवन की गति रुक जाने पर मृत्यु ही पड़ाव स्थल है I
परंतु जब मनुष्य संसार में आकर दु:ख, मुसीबतों और बुरे समय से गुज़रता है तो ना चाहते हुए भी उसका जीवन ख़त्म सा हो जाता है I
प्रस्तुत पंक्तियों का संदेश लिखिए I
इन पंक्तियों के द्वारा कवि श्री आरसी प्रसाद सिंह यह संदेश देना चाहते हैं कि जीवन आगे बढ़ने के लिए, गतिमान बनने के लिए मिला है, आनी वाली कठिनायों से घबराकर समय नहीं गवाँना चाहिए I जीवन मिला है तो मौत निश्चित है, सोच समझ कर आगे बढ़ने चाहिए I
निर्झर कहता है - बढ़े चलो, तुम पीछे मत देखो मुड़कर I
यौवन कहता है - बढ़े चलो, सोचो मत क्या होगा चलकर I
चलना है -केवल चलना है, जीवन चलता ही रहता है I
मर जाना है रुक जाना ही, निर्झर यह झरकर कहता है I
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निर्झर हमसे क्या कहता है ?
निर्झर कहता है जब हम थककर हारकर जीवन की परेशानियों से दूर भागते है, इनका सामना नहीं कर पाते अपने को कमजोर समझने लगते है, तब हम रुक जाते हैं और यह रुक जाना ही मरने के समान है I जीवन मरने के लिए नहीं आगे बढ़ने के लिए मिलता है I जो बीत गया है उसे पीछे छोड़ हमे आगे ही बढ़ते जाना चाहिए I
यौवन क्या संदेश देता है और क्यों?
यौवन अर्थात जवानी से भरपूर युवक मानव जाति को यही संदेश देता है कि युवावस्था ही एक ऐसी अवस्था है जिसमें जोश, उमंग, हर काम को करने का हौसला मनुष्य के अंदर होता है जो हमे पराजित होने से रोकता है, निरंतर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है और असंभव को संभव बनाता है I
कवि सिर्फ़ चलने के लिए क्यों कह रहे है?
कवि श्री आरसी प्रसाद सिंह सिर्फ़ चलने के लिए कह रहे है क्योंकि मनुष्य के अंदर ही समझदारी, सूझ-बूझ, बुद्धि होती है जिससे वह बुरे समय में भी सही रास्ता चुन सकता है और जीवन का लक्ष्य प्राप्त कर सकता है I
रुक जाने को कवि मरने के समान क्यों कहता है?
जीवन का झरना एक आशावादी कविता है रुक जाने को कवि मरने के समान कहते है क्योंकि जब आप मन से हार जाते हैं जीवन की चुनौतियों का सामना करने से घबराने लगते हैं अपने को शक्तिहीन महसूस करने लगते है आगे बढ़ने की ईच्छाएँ मर जाती हैं तब ज़िंदगी रुक जाती है और वह मरने के समान होती है I
झरने के जीवन से क्या शिक्षा मिलती है?
जीवन का झरना’ एक आशावादी कविता है I
मनुष्य को कठिन में झरने की तरह हार नहीं माननी चाहिए I
- सभी बाधाओं का डटकर सामना करना चाहिए हमेशा आगे बदते रहना चाहिए I
- छोटे स्तर से शुरूवात करके चोटी पर पहुँचना चाहिए I
- धारा प्रवाह के अनुसार अपना रास्ता खुद बना लेना चाहिए I
- चलना ही जीवन है तथा रुकना मृत्यु की पहचान है I
निर्झर और जीवन में क्या समानताएँ पाई गई है?
- निर्झर और जीवन दोनों गतिमान हैं अर्थात चलते रहते हैं I
- निर्झर जब रुक जाता है तब वह समाप्त हो जाता है उसका अस्तित्व नहीं रहता हैI
- जीवन भी जब तक गतिशील है तब तक जीवित है जब उसकी गति समाप्त हो जाती है अर्थात साँसों का आना जाना बंद हो जाता है तब उसकी मृत्यु हो जाती हैI
जीवन क्या है ? मानव जीवन श्रेष्ठ क्यों है?
जन्म और मृत्यु अटल सत्य है, जिसने जन्म लिया है उसकी मृत्यु भी निश्चित है I
जीवन जन्म से मृत्यु तक के सफ़र का नाम है I
मानव जीवन श्रेष्ठ है क्योंकि यह जानते हुए की मृत्यु निश्चित है
· मनुष्य जीवन मैं अच्छे काम करता है,
· जीवन का आनंद लेता है,
· नई नई चीज़ों की खोज कर उन्नति के शिखर पर बढ़ता जाता है
· मृत्यु से घबराकर निराश नहीं हो जाता है I
अत: सभी प्राणियों में मानव जीवन श्रेष्ठ है I
१. कवि ने जीवन को किसकी उपमा दी है ?
उत्तर : कवि आरसीप्रसाद सिंह ने जीवन को झरने की उपमा दी है।