आगें चले बहुरि रघुराया। रिष्यमूक परवत निअराया।।
तहँ रह सचिव सहित सुग्रीवा। आवत देखि अतुल बल सींवा।।
अति सभीत कह सुनु हनुमाना। पुरुष जुगल बल रूप निधाना।।
धरि बटु रूप देखु तैं जाई। कहेसु जानि जियँ सयन बुझाई।।
पठए बालि होहिं मन मैला। भागौं तुरत तजौं यह सैला।।
बिप्र रूप धरि कपि तहँ गयऊ। माथ नाइ पूछत अस भयऊ।।
को तुम्ह स्यामल गौर सरीरा। छत्री रूप फिरहु बन बीरा।।
कठिन भूमि कोमल पद गामी। कवन हेतु बिचरहु बन स्वामी।।
मृदुल मनोहर सुंदर गाता। सहत दुसह बन आतप बाता।।
की तुम्ह तीनि देव महँ कोऊ। नर नारायन की तुम्ह दोऊ।।
तहँ रह सचिव सहित सुग्रीवा। आवत देखि अतुल बल सींवा।।
अति सभीत कह सुनु हनुमाना। पुरुष जुगल बल रूप निधाना।।
धरि बटु रूप देखु तैं जाई। कहेसु जानि जियँ सयन बुझाई।।
पठए बालि होहिं मन मैला। भागौं तुरत तजौं यह सैला।।
बिप्र रूप धरि कपि तहँ गयऊ। माथ नाइ पूछत अस भयऊ।।
को तुम्ह स्यामल गौर सरीरा। छत्री रूप फिरहु बन बीरा।।
कठिन भूमि कोमल पद गामी। कवन हेतु बिचरहु बन स्वामी।।
मृदुल मनोहर सुंदर गाता। सहत दुसह बन आतप बाता।।
की तुम्ह तीनि देव महँ कोऊ। नर नारायन की तुम्ह दोऊ।।
जग कारन तारन भव भंजन धरनी भार।
की तुम्ह अकिल भुवन पति लीन्ह मनुज अवतार।।
की तुम्ह अकिल भुवन पति लीन्ह मनुज अवतार।।
नाम राम लछिमन दौउ भाई। संग नारि सुकुमारि सुहाई।।
आपन चरित कहा हम गाई। कहहु बिप्र निज कथा बुझाई।।
प्रभु पहिचानि परेउ गहि चरना। सो सुख उमा नहिं बरना।।..
पुलकित तन मुख आव न बचना। देखत रुचिर बेष कै रचना।।
पुनि धीरजु धरि अस्तुति कीन्ही। हरष हृदयँ निज नाथहि चीन्ही।।
तब रघुपति उठाइ उर लावा। निज लोचन जल सींचि जुड़ावा।।
सुनु कपि जियँ मानसि जनि ऊना। तैं मम प्रिय लछिमन ते दूना।।
समदरसी मोहि कह सब कोऊ। सेवक प्रिय अनन्यगति सोऊ।।
सो अनन्य जाकें असि मति न टरइ हनुमंत।
मैं सेवक सचराचर रूप स्वामि भगवंत।।
मैं सेवक सचराचर रूप स्वामि भगवंत।।
नाथ सैल पर कपिपति रहई। सो सुग्रीव दास तव अहई।।
तेहि सन नाथ मयत्री कीजे। दीन जानि तेहि अभय करीजे।।
सो सीता कर खोज कराइहि। जहँ तहँ मरकट कोटि पठाइहि।।
एहि बिधि सकल कथा समुझाई। लिए दुऔ जन पीठि चढ़ाई।।
जब सुग्रीवँ राम कहुँ देखा। अतिसय जन्म धन्य करि लेखा।।
सादर मिलेउ नाइ पद माथा। भैंटेउ अनुज सहित रघुनाथा।।
कपि कर मन बिचार एहि रीती। करिहहिं बिधि मो सन ए प्रीती।।
तब हनुमंत उभय दिसि की सब कथा सुनाइ।।
पावक साखी देइ करि जोरी प्रीती दृढ़ाइ।।
आगें चले बहुरि रघुराया। रिष्यमूक परवत निअराया।।
तहँ रह सचिव सहित सुग्रीवा। आवत देखि अतुल बल सींवा।। अति सभीत कह सुनु हनुमाना। पुरुष जुगल बल रूप निधाना।। धरि बटु रूप देखु तैं जाई। कहेसु जानि जियँ सयन बुझाई।। पठए बालि होहिं मन मैला। भागौं तुरत तजौं यह सैला।। |
१. प्रस्तुत पंक्तियों का प्रसंग बताईये I
२. सुग्रीव कौन से पर्वत पर रहते थे? वहां कौन पहुंचे?
३. दो पुरूष कौन थे ? यहाँ क्यों घूम रहे थे? उन्हें देखकर कौन डरने लगा?
४. सुग्रीव क्या देखकर भयभीत हो गए? उन्होंने हनुमानजी से क्या कहा?
५. यदि वे बाली के भेजे हुए होते तो सुग्रीव क्या करते?
६. सुग्रीव ने हनुमानजी से क्या प्रार्थना की?
७. सुग्रीव का परिचय देते हुए बताईये की वह इस पर्वत पर क्यों रहता है ?
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बिप्र रूप धरि कपि तहँ गयऊ। माथ नाइ पूछत अस भयऊ।।
को तुम्ह स्यामल गौर सरीरा। छत्री रूप फिरहु बन बीरा।।
कठिन भूमि कोमल पद गामी। कवन हेतु बिचरहु बन स्वामी।। मृदुल मनोहर सुंदर गाता। सहत दुसह बन आतप बाता।। की तुम्ह तीनि देव महँ कोऊ। नर नारायन की तुम्ह दोऊ।।
जग कारन तारन भव भंजन धरनी भार।
की तुम्ह अकिल भुवन पति लीन्ह मनुज अवतार।।
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१. हनुमानजी किस रूप में श्री राम और लक्ष्मण के पास पहुंचे?
२. हनुमान से उन पुरूषों का परिचय कैसे हुआ? / हनुमान ने उनसे जाकर क्या पूछा?
३. तीन देव किसे कहा गया है?
४. भव भंजन का क्या अर्थ है? भव भंजन कौन, किसे और क्यों कह रहा है?
५. मनुज अवतार किसे कहा गया है? मनुष्य अवतार में भगवन कब लेते हैं? मनुज अवतार का अर्थस्पष्ट कीजिये I
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कोसलेस दसरथ के जाए । हम पितु बचन मानि बन आए।।
नाम राम लछिमन दौउ भाई। संग नारि सुकुमारि सुहाई।
इहाँ हरि निसिचर बैदेही। बिप्र फिरहिं हम खोजत तेही।।
आपन चरित कहा हम गाई। कहहु बिप्र निज कथा बुझाई।। |
१. श्री रामजी ने क्या उत्तर देकर हनुमानजी की उत्सुकता शांत की?
२. उनके साथ सुकुमारी नारी कौन थी? उनका हरण किसने किया था?
३. श्री राम और लक्ष्मण को किस कारण वनवास मिला था?
४. श्री राम को वनवास किसने दिलवाया और क्यों?
५. जानकीजी का हरण कहाँ से हुआ और कैसे?
६. रावण ने जानकीजी का हरण क्यों किया था? इसके पीछे क्या सन्दर्भ है?
७. श्री राम हनुमानजी से उनके बारे में उत्सुक हो गए और उन्होंने उनसे क्या पूछा?
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प्रभु पहिचानि परेउ गहि चरना। सो सुख उमा नहिं बरना।।.
पुलकित तन मुख आव न बचना। देखत रुचिर बेष कै रचना।।
पुनि धीरजु धरि अस्तुति कीन्ही। हरष हृदयँ निज नाथहि चीन्ही।।
तब रघुपति उठाइ उर लावा। निज लोचन जल सींचि जुड़ावा।।
सुनु कपि जियँ मानसि जनि ऊना। तैं मम प्रिय लछिमन ते दूना।। समदरसी मोहि कह सब कोऊ। सेवक प्रिय अनन्यगति सोऊ।।
सो अनन्य जाकें असि मति न टरइ हनुमंत।
मैं सेवक सचराचर रूप स्वामि भगवंत।। |
१. हनुमानजी ने श्री राम और लक्ष्मण को किस रूप में देखा था ? वे उन्हें पहचान क्यों नहीं पाए?
२. श्री राम को पहचानने के बाद हनुमानजी की क्या प्रतिक्रिया थी?
३. यह कथा कौन किसे सुना रहा है? श्री राम के रूप का किस प्रकार वर्णन किया गया गया है?
४. तब रघुपति उठाइ उर लावा निज लोचन जल सींची जुड़ावा पंक्ति का अर्थ लिखिए I
५. श्री राम ने हनुमाजी के बारे में जानकार उन्हें किन शब्दों में आश्वासन दिया?
६. श्री राम के सेवक को अनन्यगति क्यों कहा गया है? उन्हें सेवक ही क्यों प्रिय हैं?
७. अनन्य को किस तरह परिभाषित किया गया है?
८. समदर्शी शब्द का अर्थ लिखते हुए बताईये की भक्त भगवन को समदर्शी कैसे समझता है?
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देखि पवन सुत पति अनुकूला। हृदयँ हरष बीती सब सूला।।
नाथ सैल पर कपिपति रहई। सो सुग्रीव दास तव अहई।।
तेहि सन नाथ मयत्री कीजे। दीन जानि तेहि अभय करीजे।।
सो सीता कर खोज कराइहि। जहँ तहँ मरकट कोटि पठाइहि।। एहि बिधि सकल कथा समुझाई। लिए दुऔ जन पीठि चढ़ाई।। जब सुग्रीवँ राम कहुँ देखा। अतिसय जन्म धन्य करि लेखा।।
सादर मिलेउ नाइ पद माथा। भैंटेउ अनुज सहित रघुनाथा।।
कपि कर मन बिचार एहि रीती। करिहहिं बिधि मो सन ए प्रीती।। तब हनुमंत उभय दिसि की सब कथा सुनाइ।। पावक साखी देइ करि जोरी प्रीती दृढ़ाइ।। |
१. हनुमानजी क्या देखकर प्रसन्न हुए?
२. हनुमानजी ने श्री राम से क्या प्रार्थना की?
३. हनुमानजी ने श्री राम से सुग्रीव से मित्रता करने का अनुरोध क्यों किया?
४. हनुमानजी ने दोनों को कहाँ बिठाया? उन्हें कहाँ ले गए?
५. श्री राम क देखकर सुग्रीव क्यों प्रसन्न हो उठे?
६. सुग्रीव श्री राम से किस प्रकार मिले? श्री राम ने उन्हें किस प्रकार स्वीकार किया?
७. सुग्रीव श्री राम की मित्रता के बारे में क्या सोच रहे थे?
८. बलि और सुग्रीव कौन थे? राम सुग्रीव की मित्रता एक आदर्श मित्रता क्यों मानी जाती है
९. जानकीजी का पता लगाने में किसने मदद की और किस प्रकार पता लगाया ?
१०. सुग्रीव को पम्पापुर का राज्य कैसे मिला?
११. क्या सुग्रीव ने राज्य मिलने के बाद तुरंत ही वानर सीताजी की खोज में भेज दिए थे?
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