Chapter 5: मध्ययुगीन काव्य - भक्ति महिमा
अंतर स्पष्ट कीजिए -
SOLUTION
लिखिए -
‘मैं ही मुझको मारता’ से तात्पर्य ____________
SOLUTION
दादू दयाल जी के अनुसार मनुष्य का सबसे बड़ा दुश्मन 'में
अर्थात उसका अहंकार है। अपने अहंकार के कारण मनुष्य का
विवेक खत्म हो जाता है और उसे नष्ट होते देर नहीं लगती। इस
तरह मनुष्य को मारने वाला उसका अपना ही अहंकार है। कवि ने इन पंक्तियों में यह बात कही है।
सहसंबंध जोड़कर अर्थपूर्ण वाक्य बनाइए –
(१) काहै को दुख देखिए
(२) बिरला
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प्रेम की पाती कोई बिरला ही पढ़ पाता है।
(१) पाती प्रेम की
(२) साईं
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जो पहुँचे हुए लोग हैं, वे एक ही बात कह गए हैं।
‘‘जिनकी रख्या तूँ करैं ते उबरे करतार’’, इस पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
SOLUTION
संत दादू दयाल को सर्व शक्तिमान प्रभु पर अटूट विश्वास है। वे कहते हैं, जिसकी रक्षा प्रभु करते हैं, वह भवसागर पार कर लेता है। उसका कोई भी बाल बांका नहीं कर सकता। प्रभु की शक्ति को आरपार नहीं है। प्रह्लाद के पिता हिरण्यकशिपु ने प्रहलाद को होलिका की गोद में बिठाकर आग को समर्पित कर दिया था, तो उनकी रक्षा प्रभु ने ही की थी। होलिका को आग में न जलने का वरदान था, इसके बावजूद होलिका जलकर भस्म हो गई और प्रह्लाद को आँच भी नहीं आई। यह प्रभु की शक्ति का ही प्रताप था।
‘संत दादू के मतानुसार ईश्वर सबमें है’, इस आशय को व्यक्त करने वाली पंक्तियाँ ढूँढ़कर उनका भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
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संत दादू दयाल ने 'काहै कौं दुख दीजिये, साईं है सब माहिं। दादू एकै आत्मा, दूजा कोई नाहिं' पंक्तियों में, ईश्वर को घट-घट में व्याप्त बताया है। वे कहते हैं कि हर व्यक्ति में ईश्वर का अंश होता है। सब की आत्मा एक ही है। उसमें ईश्वर विद्यमान होते हैं। उसमें परमात्मा के अतिरिक्त दूसरा कोई नहीं होता। इसलिए कोई व्यक्ति यदि किसी व्यक्ति को कष्ट देता है, उसे पीड़ित करता है, तो वह उस व्यक्ति का नहीं, बल्कि अपने स्वामी प्रभु का ही अपमान करता है। इसलिए हमें किसी भी व्यक्ति को कभी दुख नहीं देना चाहिए।
‘अहंकार मनुष्य का सबसेब ड़ा शत्रु है’, इस उक्ति पर अपने विचार स्पष्ट कीजिए।
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मनुष्य के अंदर सद् और असद् दो वृत्तियाँ होती हैं। सद् का अर्थ है अच्छा और असद् का अर्थ है जो अच्छा न हो यानी बुरा। अहंकार मनुष्य की बुरी वृत्ति है। अहंकारी मनुष्य को अच्छे और बुरे का विवेक नहीं होता। वह अपने घमंड में चूर रहता है और अपना भला-बुरा भी भूल जाता है। अहंकारी मनुष्य को अपनी गलती का अहसास तब होता है, जब उसकी की गई गलतियों का परिणाम उसके सामने आता है। अहंकार का परिणाम बहुत बुरा होता है। इसके कारण बड़े-बड़े ज्ञानी पुरुषों को भी मुँह की खानी पड़ती है। रावण जैसा महाज्ञानी पंडित भी अपने अहंकार । के कारण अपने कुल-परिवार सहित नष्ट हो गया। अहंकार मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है और उसकी मंजिल है दारुण दुख। इसलिए मनुष्य को अहंकार का मार्ग त्यागकर प्रेम और सद्गुण का मार्ग । अपनाना चाहिए।
‘प्रेम और स्नेह मनुष्य जीवन का आधार है’, इस संदर्भ में अपना मत लिखिए।
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प्रेम और स्नेह से बढ़कर इस संसार मनुष्य के लिए और कोई अच्छी बात नही हो सकती। जीवन को तनाव रहित और सामान्य बनाए रखने में प्रेम और स्नेह महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते है। सभी मनुष्य एक ही ईश्वर की संतान हैं। सब में ईश्वर का अंश होता है। इसलिए हमें सब के साथ प्रेमपूर्ण व्यवहार करना चाहिए। प्रेमपूर्ण व्यवहार से शत्रु भी मित्र बन जाते हैं। जन्म से न कोई किसी का मित्र होता है न कोई किसी का शत्रु। हम अपने प्रेम और स्नेह से ही किसी से नजदीकी अथवा दूरी बनाते हैं। अर्थात किसी से प्रेम करने लगते हैं या किसी से नफरत करने लगते हैं। अनेक संतों और विद्वानों ने प्रेम की महत्ता बताई है और हमें प्रेम से रहने की शिक्षा दी है। संत कबीर कहते हैं - 'पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय, ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय।' इस तरह प्रेम और स्नेह सुख-चैन से शांतिपूर्ण जीवन जीने का आधार है। प्रेम बहुत नाजुक होता है। हमें इस प्रेम और स्नेह को सदा बनाए रखना चाहिए।
ईश्वर भक्ति तथा प्रेम के आधार पर साखी के प्रथम छह पदों का रसास्वादन कीजिए।
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कवि कहते हैं कि ईश्वर प्रत्येक व्यक्ति के मन के भीतर है, उसे पूजने के लिए बाहर जाने की जरूरत नहीं है। दादू दयाल माया-मोह को त्यागने और प्रभु राम की भक्ति करने का आवाहन करते हैं। उन्होंने माया-मोह में लिप्त लोगों के दिल को पत्थर के समान तथा राम की भक्ति में लीन लोगों के दिल को मक्खन के समान कोमल कहा है। वे सच्चे मन से ईश्वर की भक्ति के समर्थक हैं। वे ईश्वर की भक्ति के लिए साधक को अपना अहंकार त्यागना आवश्यक मानते हैं। दादू दयाल की भक्ति ईश्वर में लीन होकर अपना अस्तित्व मिटा देने वाली भक्ति है। वे ईश्वर के गुण गाते और मस्त होकर नाचते हुए ईश्वर को अपने समक्ष प्रत्याशी खड़े हुए पाते हैं। दादू दयाल की ईश्वर भक्ति में अटूट श्रद्धा है। वे ईश्वरभक्ति को भवसागर पार करने का एकमात्र साधन मानते हैं। प्रेम के बारे में दादू दयाल का कहना है कि प्रेम को समझना बहुत मुश्किल है। कोई-कोई ही इसे समझ पाता है। वेद-पुराण आदि ग्रंथों को पढ़कर उसे नहीं समझा जा सकता। वेदों और पुराणों में ज्ञान का विपुल भंडार भरा पड़ा है, पर दादू जैसा ज्ञानी तो उसमें से एक ही अक्षर पढ़ता है। वह अक्षर है 'प्रेम'। दादू दयाल ने ईश्वर भक्ति और प्रेम की इन बातों को बहुत सीधे-सादे ढंग से अपनी सधुक्कडी भाषा में अत्यंत सरल ढंग से प्रस्तुत किया है। उन्होंने ईश्वर भक्ति और प्रेम संबंधी अपने विचारों को साखियों अर्थात दोहा-छंद में ज्ञानोपदेश के रूप में प्रस्तुत किया है। दादू दयाल ने सीधे-सादे ढंग से अपनी सधुक्कड़ी भाषा में अपने विचारों को अत्यंत सरल ढंग से प्रस्तुत किया है। अपनी बातें कहने के लिए उन्होंने साखी अर्थात दोहा छंद का प्रयोग किया है। जिसके माध्यम से उन्होंने गूढ़ बातें भी गिने-चुने शब्दों में कह दी हैं।
जानकारी दीजिए :
निर्गुण शाखा केसंत कवि
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निर्गुण भक्ति शाखा दो शाखाओं में विभाजित थी। एक ज्ञानाश्रयी शाखा और दूसरी प्रेममार्गी शाखा। निर्गुण भक्ति ज्ञानाश्रयी शाखा के प्रमुख कवि कबीर, रैदास, दादू दयाल, नानक तथा मलूकदास आदि हैं। इन कवियों ने निर्गुण निराकार ईश्वर की उपासना पर जोर दिया। उनकी भाषा सीधी-सादी बोलचाल की भाषा है।
संत दादू के साहित्यिक जीवन का मुख्य लक्ष
SOLUTION
संत दादू दयाल निर्गुण भक्ति शाखा की ज्ञानाश्रयी शाखा के प्रमुख कवि थे। दादू दयाल निर्गुण और निराकार प्रभु के उपासक थे और उन्होंने निराकार ईश्वर की उपासना पर जोर दिया। उन्होंने जाति-पाँति, धार्मिक भेदभाव, सामाजिक कुरीतियों तथा अंधविश्वास संबंधी मिथ्याचारों का विरोध किया। इनकी भाषा सीधी-सादी तथा अनेक बोलियों के मेलवाली है। इसे सधुक्कड़ी भाषा के नाम से जाना जाता है। आपके साहित्यिक जीवन का मुख्य लक्ष्य सामाजिक कुरीतियों और आडंबरो का खंडन करना और निर्गुण, निराकार ईश्वर की उपासना करना है।
निम्नलिखित वाक्य शुद्ध करके फिर से लिखिए -
बाबु साहब ईश्वर के लिए मुझ पे दया कीजिए ।
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बाबू साहब ईश्वर के लिए मुझ पर दया कीजिए।
उसेतो मछुवे पर दया करना चाहिए था।
SOLUTION
उसे तो मछुवे पर दया करनी चाहिए थी।
उसे तुम्हारे शक्ती पर विश्वास हो गया।
SOLUTION
से तुम्हारी शक्ति पर विश्वास हो गया।
वह निर्भीक व्यक्ती देश में सुधार करता घूमता था।
SOLUTION
वह निर्भीक व्यक्ति देश का सुधार करता घूमता था।
मल्लिका ने देखी तो आँखे फटी रह गया।
SOLUTION
मल्लिका ने देखा तो आँखें फटी रह गई।
यहाँतक पहुँचते-पहुँचतेमार्च पर भारा अप्रैल लग जायेगी।
SOLUTION
मार्च-अप्रैल तक यहाँ पहुँचते-पहुँचते माड़ा लग जाएगा।
हमारा तो सबसे प्रीती है।
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हमारी तो सबसे प्रीति है।
तुम जूठेसाबित होगा।
SOLUTION
तुम झूठे साबित होगे।
तूम नेदीपक जेब मेंक्यों रख लिया?
SOLUTION
तुमने दीपक जेब में क्यो रख लिए?
इसकी काम आएगा।
SOLUTION
इसके काम आएगा।
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Hindi - Yuvakbharati 11th Standard Balbharti Solutions for HSC Maharashtra State Board
• Chapter 2: लघुकथाएँ (उषा की दीपावली, मुस्कु राती चोट)
• Chapter 4: मेरा भला करने वालों से बचाएँ
• Chapter 5.1: मध्ययुगीन काव्य - भक्ति महिमा
• Chapter 5.2: मध्ययुगीन काव्य - बाल लीला
• Chapter 9: गजलें (दोस्ती, मौजूद)
• Chapter 10: महत्त्वाकांक्षा और लोभ
• Chapter 12: सहर्ष स्वीकारा है
• Chapter 13: नुक्कड़ नाटक (मौसम, अनमोल जिंदगी)
• Chapter 14: हिंदी में उज्ज्वल भविष्य की संभावनाएँ
• Chapter 15: समाचार : जन से जनहित तक
• Chapter 16: रेडियो जॉकी
• Chapter 17: ई-अध्ययन : नई दृष्टि
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